इस एक डर में कि आख़िर को टूट जाएगा ये आइना मिरे हाथों से छूट जाएगा मैं तोड़ सकता हूँ पल में सुकूत-ए-संग-नसब मगर ये ध्यान कि इक शख़्स रूठ जाएगा ज़रूर बुझ के रहेगा रुख़-ए-सफ़र-तलबी ये आबला है तो इक रोज़ फूट जाएगा यक़ीन था कि कोई सानेहा गुज़रना है गुमाँ न था कि तिरा साथ छूट जाएगा हम एक अहद-ए-अबद-याब का खरा सच हैं हमारे साथ हमारा ये झूट जाएगा