मेरे अशआ'र में अल्फ़ाज़ के जौहर देखो बंद है फ़िक्र के कूज़े में समुंदर देखो हर तरफ़ जल्वा-फ़गन नूर का मंज़र देखो देखने वालो मिरे क़ल्ब के अंदर देखो दश्त-ए-ज़ुल्मत से उजालों का तजस्सुस ले कर दोस्तो आओ ब-सद-शौक़ मिरा घर देखो संग-ए-दुश्नाम उठाते हो उठाओ लेकिन अपने किरदार की तहरीर तो पढ़ कर देखो मौज-दर-मौज अभी अक्स बिखर जाएगा झील के चेहरे पे तुम फेंक के पत्थर देखो सुब्ह की पहली किरन झाँक गई रौज़न से बंद कमरे से निकल कर ज़रा बाहर देखो रू-ब-रू चेहरे की तौसीफ़-पसंदी से परे ख़ुद को किरदार के आईने में 'नश्तर' देखो