ख़ुद अपना एहतिसाब किया कुछ नहीं किया ज़र्रे को आफ़्ताब किया कुछ नहीं किया होंटों पे तिश्नगी का समुंदर लिए हुए सहरा को आब आब किया कुछ नहीं किया दुनिया के बे-शुमार ख़ुदाओं की भीड़ में तेरा ही इंतिख़ाब किया कुछ नहीं किया इज़्ज़त वक़ार जाह-ओ-हशम सब तुम्हारे नाम हम ने जो इंतिसाब किया कुछ नहीं किया हर गाम ज़ुल्मतों का सफ़र तेज़-तर मगर ज़ुल्मत से इज्तिनाब किया कुछ नहीं किया सज्दे उसी के पाँव की ज़ीनत बने रहे वो जुर्म-ए-बे-हिसाब किया कुछ नहीं किया क़ातिल हमारे शहर के ज़ेर-ए-नक़ाब थे 'नश्तर' ने बे-नक़ाब किया कुछ नहीं किया