अच्छा है दिल के साथ जो रोए जिगर को हम भूले हुए थे क्यों निगह-ए-फ़ित्ना-गर को हम पाया उसे तो खो गए ख़ुद उम्र-भर को हम वो क्या मिला तरस गए अपनी ख़बर को हम तुम को तुम्हारे हुस्न की दिखलाएँगे बहार अपना सा कर सके जो तुम्हारी नज़र को हम रहमत ख़ुदा की तुझ पे हो ऐ बे-ख़ुदी-ए-शौक़ कब से तलाश करते थे इस रहगुज़र को हम उस की गली में आ के सभी भूलते हैं राह ढूँडेगा राहबर हमें और राहबर को हम इक नक़्श-ए-यास ऐसा ही दरकार दिल को है फिर देख लें बुझी हुई शम-ए-सहर को हम यारब तिरी ख़ुदाई को ख़तरा लगा है क्या देखें कभी तो उस बुत-ए-काफ़िर-असर को हम क्या जानते थे हम तू सितमगर है इस क़दर क्या देख आए थे तिरे क़ल्ब-ओ-जिगर को हम इस शौक़ में तो आते ही जाते नज़र पड़े छुप-छुप के देखते हैं तिरी रहगुज़र को हम काटे कटी है किस से ख़ुदाया शब-ए-फ़िराक़ तू ही दिखाए हम को तो देखें सहर को हम वो सर्फ़-ए-नाज़-ए-हुस्न था हम महव-ए-ज़ौक़-ए-दीद वो हम को देखता था और उस की नज़र को हम कुंज-ए-क़फ़स दिया है तो इतनी सकत भी दे तोड़ें तड़प तड़प के हर इक बाल-ओ-पर को हम उन की ख़ुशी यही है तू ग़म में भी ख़ुश रहे समझा रहे हैं देर से इस चश्म-ए-तर को हम ये नक़्श-ए-पा-ए-नाज़ है इक शम-ए-हुस्न का दिल से लगाए बैठे हैं दाग़-ए-जिगर को हम अपने जुनून-ए-दिल का 'जुनूँ' है यही इलाज लाओ कि सर पे डाल लें उस ख़ाक-ए-दर को हम