ज़रा देखो कि मंज़र आसमाँ के पार भी तो है सफ़र है शर्त थोड़ा जिस्म-ओ-जाँ के पार भी तो है ज़रूरी तो नहीं हर लफ़्ज़ तुम पर मुन्कशिफ़ हो जाए कि इक किरदार तूल-ए-दास्ताँ के पार भी तो है अभी से मातम-ए-फ़स्ल-ए-बहाराँ है नहीं जाएज़ गुल-ए-अफ़्सुर्दगी फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ के पार भी तो है बहुत रोए हो लेकिन दफ़्तर-ए-ग़म तह नहीं करना अभी इक बहर-ए-ख़ूँ आह-ओ-फ़ुग़ाँ के पार भी तो है नहीं महदूद बस इस ख़ाक-दाँ तक इश्क़ की शोरिश सदा-ए-दर्द जारी ला-मकाँ के पार भी तो है अरूज़-ओ-मअ'नी-ओ-इल्म-ए-बयाँ उस्लूब सब बरसर सुख़न पिन्हाँ कोई ज़ोर-ए-बयाँ के पार भी तो है