अच्छा नहीं होता कभी बीमार-ए-मोहब्बत गोया मरज़ुल-मौत है आज़ार-ए-मोहब्बत क्यों सर्द है अब जोश-ए-ख़रीदार-ए-मोहब्बत क्या हो गई वो गर्मी-ए-बाज़ार-ए-मोहब्बत मा'लूम हुआ अब कि वो थीं बातें ही बातें शोख़ी से शरारत से था इक़रार-ए-मोहब्बत या ऐसे वो भूले कि समझते ही नहीं कुछ या ख़ुद मुझे आता नहीं इज़हार-ए-मोहब्बत हैं एक ही डोरे में बंधे शैख़-ओ-बरहमन दोनों ही की गर्दन में है ज़ुन्नार-ए-मोहब्बत गुल-दस्ते हैं ज़ख़्मों के कँवल दाग़ों के दिल में क्या तुर्फ़ा है आराइश-ए-दरबार-ए-मोहब्बत चितवन कहे देती है कि उल्फ़त है उसे भी क्या फ़र्ज़ है मुँह खोल के इक़रार-ए-मोहब्बत लज़्ज़त वो शकर में न मज़ा शहद का ऐसा कुछ और है शीरीनी-ए-गुफ़्तार-ए-मोहब्बत महशर में 'ख़याल' आज करें उस का गिला क्या दुनिया में तो करते रहे इज़हार-ए-मोहब्बत