मोहब्बत की जहाँबानी के दिन हैं ज़मीं पर ख़ुल्द-सामानी के दिन हैं ये है दौर-ए-जलाल-ए-इब्न-ए-आदम न सुल्तानी न ख़ाक़ानी के दिन हैं जो हैं अपनी जगह ख़ुर्शीद-बुनियाद अब उन ज़र्रों की ताबानी के दिन हैं इरादों की बुलंदी औज पर है हवादिस की पशेमानी के दिन हैं हर इक ज़ंजीर है अब पा-शिकस्ता हर इक ज़िंदाँ की वीरानी के दिन हैं क़सीदे बादशाहों के हुए ख़त्म मोहब्बत की ग़ज़ल-ख़्वानी के दिन हैं तक़द्दुस हो फ़रिश्तों को मुबारक 'रविश' अब ख़ल्क़-ए-इंसानी के दिन हैं