अदा-ए-दिलबराँ बदली हुई है मोहब्बत की ज़बाँ बदली हुई है सजे हैं असलहे अलमारियों में खिलौनों की दुकाँ बदली हुई है ख़लाओं में तसादुम के सबब से फ़ज़ा-ए-आसमाँ बदली हुई है कहाँ से फूल गुलशन में खिलेंगे बहार-ए-गुल्सिताँ बदली हुई है अंधेरे सुब्ह तक दम तोड़ देंगे रिदा-ए-कहकशाँ बदली हुई है वही शिकवे गिले हैं ज़िंदगी में कहाँ तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ बदली हुई है हुदी-ख़्वाँ भूल बैठे तर्ज़ अपनी कि सहरा की अज़ाँ बदली हुई है इनायत की नज़र है दुश्मनों पर निगाह-ए-दोस्ताँ बदली हुई है सफ़ीने हैं रवाँ 'सिद्दीक़' अब भी मगर सम्त-ए-रवाँ बदली हुई है