हम और उन के लुत्फ़-ओ-करम मुद्दतों के बाद ज़ुल्मत हुई है नूर में ज़म मुद्दतों के बाद अब फिर मशाम-ए-जाँ में सबा का ख़िराम है किस ने किया है जिस्म पे दम मुद्दतों के बाद निकले हैं किस की आह-ए-सहर-ताब के तुफ़ैल ज़ुल्फ़-ए-शब-ए-दराज़ के ख़म मुद्दतों के बाद लौटा है ले के ज़ह्न में आशोब-ए-ज़िंदगी दिल का ग़ज़ाल सू-ए-हरम मुद्दतों के बाद दो-चार दिन की बात नहीं ऐ हुजूम-ए-शौक़ मिलता है हुस्न-ए-जाह-ओ-हशम मुद्दतों के बाद यख़-बस्ता फ़िक्र याद की आँचों से गर्म है भड़का है दिल में शो'ला-ए-ग़म मुद्दतों के बाद 'सिब्तैन' शहर-ए-इल्म-ओ-अदब के नसीब में होते हैं हम से अहल-ए-क़लम मुद्दतों के बाद