अदू पुर-लुत्फ़ है हम पर जफ़ा है मिरी जाँ क्या यही रस्म-ए-वफ़ा है सितम-ईजाद तेरी क्या ख़ता है मिरी तक़दीर ही मुझ से ख़फ़ा है हम अपने हाल के क़ुर्बान जाएँ वो फ़रमाते हैं तुम को क्या हुआ है तिरे दर पर जबीं-साई से हासिल कहीं तक़दीर का लिक्खा मिटा है तुम्हारी काकुल-ए-पेचाँ से उलझूँ मिरा बैठे बिठाए सर-फिरा है तसव्वुर की फ़ुसूँ-कारी तो देखो वो गोया सामने बैठा हुआ है अबस करते हो तकलीफ़-ए-मुदावा मरीज़-ए-ग़म कहीं जान-बर हुआ है वो सुन कर कहते हैं फ़रियाद 'हाजिर' किसी टूटे हुए दिल की सदा है