अदालत में कभी क्या मोरिद-ए-इल्ज़ाम होते हैं वो अहल-ए-शहर जिन की शह पे क़त्ल-ए-आम होते हैं चमन में ख़ुश्क-साली पर है ख़ुश सय्याद कि अब ख़ुद परिंदे पेट की ख़ातिर असीर-ए-दाम होते हैं अगर मक़्दूर हो इन को ख़रीदा भी है जा सकता ये जो इनआ'म होते हैं या जो इकराम होते हैं जहाँ में जो ख़लल है होश वालों की बदौलत है ये बे-ख़ुद रिंद तो बस मुफ़्त में बदनाम होते हैं शरीक-ए-ग़ारत-ए-गुलशन बना है नाज़िम-ए-गुलशन सियासत में 'सदा' ऐसे करिश्मे आम होते हैं