अधूरी क़ुर्बतों के ख़्वाब आँखों को दिखा जाना हज़ारों दूरियों पर ये तिरा कुछ पास आ जाना उदासी के धुँदलकों का दिमाग़-ओ-दिल पे छा जाना नज़र के सामने इक गुम-शुदा मंज़र का आ जाना सुनी है मैं ने अक्सर बंद दरवाज़ों की सरगोशी सदाएँ चाहती हैं सब खुली सड़कों पे आ जाना तिरी यादें कि इस तूफ़ान-ए-ज़ुल्मत में भी रौशन हैं हुआ मुश्किल हवा को इन चराग़ों का बुझा जाना ख़ला में डूबती सी आहटें थीं कुछ जिन्हें हम ने सफ़र में साथ रक्खा मंज़िलों का आसरा जाना मैं तेरे साथ हूँ तो उस की ख़ुशबू के तआ'क़ुब में जहाँ तक जा सके ऐ सर-फिरी मौज-ए-हवा जाना नज़र उस की भी ऐ 'मख़मूर' धोका खा गई आख़िर वही था आश्ना चेहरा जिसे ना-आश्ना जाना