बे-नियाज़ नग़्मा-ए-दुनिया हूँ मैं अपने दिल की धड़कनें सुनता हूँ मैं वादी-ए-क़िर्तास में बहता हूँ मैं आबशार-ए-फ़िक्र का दरिया हूँ मैं दीदा-ए-बे-ख़्वाब अंजुम की तरह रुत कोई हो जागता रहता हूँ मैं आईने के रू-ब-रू हैरान हूँ जाने किस का गुम-शुदा चेहरा हूँ मैं सर-बुलंदी क्यूँ न हो मुझ को अता अपने सर माँ की दुआ रखता हूँ मैं जाने क्यूँ ख़ुद भी निगाहों की तरह उन की राहों में बिछा जाता हूँ मैं वो मुझे बहला रहे हैं यूँ 'वली' जैसे कोई ना-समझ बच्चा हूँ मैं