बे-सदा दम-ब-ख़ुद फ़ज़ा से डर ख़ुश्क पत्ता है तो हवा से डर कोरे काग़ज़ की सादगी पे न जा गुंग लफ़्ज़ों की इस रिदा से डर आसमाँ से न इस क़दर घबरा तू ज़मीं की सज़ा जज़ा से डर जाने किस खूँट तुझ को ले जाएँ शाहज़ादे नुक़ूश-ए-पा से डर तर्क-ए-दस्त-ए-तलब पे मत इतरा अपने दिल में छुपे गदा से डर अर्श तक भी उड़ान है अपनी हम परिंदों की बद-दुआ' से डर आरज़ू इक नए जनम की न कर इतनी लम्बी कड़ी सज़ा से डर