अफ़्लाक से टूटे हुए तारे पे चले आए इस दश्त में हम किस के इशारे पे चले आए उस रोज़ तो दरिया की रवानी ही अजब थी पतवार सभी एक ही धारे पे चले आए दो-लख़्त किए जाएँगे मालूम था फिर भी कुछ लोग बड़े शौक़ से आरे पे चले आए हर वक़्त जिसे काटता रहता है समुंदर क्या सोच के हम ऐसे किनारे पे चले आए कुछ लोग थे हर वक़्त मुनाफ़ा' की तलब में अंजाम ये निकला कि ख़सारे पे चले आए