अगर ग़म की हुई यूँ कार-फ़रमाई तो क्या होगा रही होते हुए भी उन के तन्हाई तो क्या होगा जुनूँ के रास्ते में गर ख़िरद आई तो क्या होगा नज़र मेरी ही मेरे दिल से टकराई तो क्या होगा ख़ुशी ग़म की नज़ाकत को न रास आई तो क्या होगा तिरी आग़ोश में भी रूह घबराई तो क्या होगा मुबारक हों तबस्सुम को तिरे ये करवटें लेकिन मिरे अश्कों ने ले ली कोई अंगड़ाई तो क्या होगा निगाह-ए-मुज़्तरिब को लाख ठहरा लें तो क्या हासिल तजल्ली ख़ुद नज़र बन कर जो थर्राई तो क्या होगा झुका दें हम तो सर साक़ी तिरे गुल-रंग जामों पर बग़ावत की जो कोई मौज उभर आई तो क्या होगा मुसल्लम ज़ौक़-ए-आज़ादी भी आदाब-ए-असीरी भी क़फ़स तक उड़ के ख़ाक-ए-आशियाँ आई तो क्या होगा गुलों की धड़कनें तो जज़्ब कर लाऊँगा गुलशन से किसी ग़ुंचे की लेकिन आँख भर आई तो क्या होगा ब-सई-ए-एहतियात-ए-ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा भी महफ़िल में 'शिफ़ा' मेरी नज़र सब को नज़र आई तो क्या होगा