अगर मैं हर्फ़-ए-ग़लत हूँ तो राएगाँ कर दे मैं जिस वरक़ पे मिलूँ उस की धज्जियाँ कर दे करम-नवाज़ अगर है तो इतनी ज़हमत कर मुझे ज़मीं से उठा और आसमाँ कर दे ऐ चारागर वो दवा ढूँढ इल्म-ए-हिकमत में जो मेरे शो'ला-ए-ग़म को धुआँ धुआँ कर दे अना-परस्ती के जो तोड़ दे घरोंदों को मुझे ख़ुलूस की वो मौज-ए-बे-कराँ कर दे ज़बान दी है तो फूलों सी गुफ़्तुगू भी दे जला के राख नहीं तू मिरी ज़बाँ कर दे मैं थक चुका हूँ बहुत धूप का सफ़र करते दुआ का माँ तू मिरे सर पे साएबाँ कर दे पढ़े ज़माना बड़े शौक़ से मुझे 'दानिश' मिरे वजूद को इक ऐसी दास्ताँ कर दे