अक़्ल-ओ-दीं है रह-ए-जुनूँ के ख़िलाफ़ कर रहा हूँ हरीम-ए-दिल का तवाफ़ वक़्त का साथ छोड़ने वाले वक़्त करता नहीं क़ुसूर मुआ'फ़ और कुछ है रविश ज़माने की अब न हम वो न सीरत-ए-अस्लाफ़ शरह-ए-ग़म तो कोई गुनाह न थी मुझ से क्यों हो गया ज़माना ख़िलाफ़ मैं मोहब्बत में बे-क़रार सही है ये किस की ख़ता क़ुसूर मुआ'फ़ मुस्कुराती हुई नज़र पे न जा मुख़लिसों के भी दिल नहीं हैं साफ़ रस्म-ओ-आईँ का ए'तिबार नहीं ‘होश’ दुनिया है दुश्मन-ए-इंसाफ़