अगरचे शक्ल-ओ-शबाहत से कम नहीं दरवेश जिन्हें तू ढूँड रहा है वो हम नहीं दरवेश बस इक नज़र की इजाज़त है और चलता बन समझ ज़रा कि मुसलसल भी रम नहीं दरवेश घिरा हुआ है मुकम्मल हवा के नर्ग़े में मगर चराग़ की गर्दन में ख़म नहीं दरवेश वो एक शख़्स हमारा नहीं हुआ अब तक सिवाए इस के तो कोई भी ग़म नहीं दरवेश कनार-ए-चश्म-ए-तमन्ना जो आ रुके 'आसिम' हुदूद-ए-अश्क में इतना भी नम नहीं दरवेश