अगरचे तर्ज़-ए-अमल उस का नागवार भी था मगर वो मेरे तसव्वुर का शाहकार भी था वो बेवफ़ा मुझे तन्हा फ़रेब क्या देता क़ुसूर-वार मिरा अपना ए'तिबार भी था हम ऐसे गुम थे मसाइल में ध्यान ही न रहा वो आ गया तो लगा उस का इंतिज़ार भी था ब-ज़ाहिर उस के लबों पर हँसी रही लेकिन दम-ए-विदाअ' वो दर-पर्दा बे-क़रार भी था जिस अंजुमन में बहुत ग़म उठाए दुख झेले उस अंजुमन में मिरा एक ग़म-गुसार भी था वो कौन शख़्स था कल रात बज़्म-ए-याराँ में जो क़हक़हों में भी शामिल था सोगवार भी था