सूद-ओ-ज़ियाँ की फ़िक्र से बेगाना बन के जी जीने की आरज़ू है तो दीवाना बन के जी फिर आम कर रुमूज़-ए-तजल्ली ब-रंग-ए-नौ तू ऐ कलीम तूर का अफ़्साना बन के जी है जुस्तुजू में तेरी तजल्ली की हर नज़र तू शम्अ-ए-रू-ए-दोस्त का परवाना बन के जी ऐ फ़ारिग़-ए-रुसूम-ओ-क़ुयूद-ए-तअ'य्युनात जी और हरीफ़-ए-काबा-ओ-बुत-ख़ाना बन के जी तार-ए-नफ़स के साज़ पे रक़्साँ है ज़िंदगी मुहताज-ए-इल्तिफ़ात-ए-मसीहा न बन के जी मरहून-ए-कैफ़ियात-ए-मय-ए-रंग-ओ-बू न हो बेगाना-वार सूरत-ए-पैमाना बन के जी कोई मक़ाम-ए-शौक़ शिकायत न कर सके ख़ुद-रफ़्ता बन के जी कभी फ़रज़ाना बन के जी 'ज़मज़म' तरीक़-ए-इश्क़ में तज्दीद-ए-शौक़ कर तफ़्सीर-ए-काबा शरह-ए-सनम-ख़ाना बन के जी