अहल-ए-दिल क्यूँकर रहें रहने के ये क़ाबिल नहीं इस जगह पथर बहुत मिलते हैं लेकिन दिल नहीं अल-मदद मौज-ए-तलातुम अल-मदद दरिया-ए-इश्क़ कश्ती-ए-दिल किस तरफ़ जाए कहीं साहिल नहीं और बढ़ना है अभी आगे हद-ए-इदराक से जिस को मैं समझा था मंज़िल वो मिरी मंज़िल नहिं क्या सुनाऊँ आप को मैं दास्तान-ए-ज़िंदगी मेरे क़ाबू में ज़बान-ए-शौक़ तो है दिल नहीं जाम भी है साक़ी-ए-गुल-गूँ-क़बा भी है 'रियाज़' जिस को नज़रें ढूँडती हैं वो सर-ए-महफ़िल नहिं