अहल-ए-ख़िरद को अहल-ए-नज़र का पता चला निकले तो कितने शम्स-ओ-क़मर का पता चला समझे थे हम कि सहल है ये जादा-ए-हयात आगे बढ़े तो सख़्त डगर का पता चला अब तक मिरी निगाह में पायाब थी नदी जब डूबने लगे तो भँवर का पता चला निकले थे हम तो शहर था गुंजान दूर तक लौटे तो फिर किसी के न घर का पता चला शोहरत हमारी फैल गई है जहान में मुद्दत के बाद अपने हुनर का पता चला 'फ़िरदौस' धूप धूप चला ज़िंदगी की राह उस को न साया-दार शजर का पता चला