एहसास-ए-ग़म-ए-इश्क़ का हासिल नहीं होता वो दर्द के जो रूह में शामिल नहीं होता ऐ ज़ौक़-ए-नज़र भूल भी जा ज़ौक़-ए-नज़र को अफ़्साना कभी ज़ीस्त का हासिल नहीं होता ऐ दोस्त वफ़ा-साज़-ए-मोहब्बत की नज़र में बिगड़ी को बना लेना तो मुश्किल नहीं होता मंज़िल तो बड़ी चीज़ है राहें नहीं मिलतीं जब शौक़-ए-तलब रहबर-ए-मंज़िल नहीं होता अक्सर मिरी आँखों ने भी इज़हार किया है लेकिन उन्हें एहसास-ए-ग़म-ए-दिल नहीं होता तूफ़ान की आग़ोश में घर ढूँडने वाला मम्नून-ए-तुनक-ज़र्फ़ी-ए-साहिल नहीं होता 'बासित' वो दिया करते हैं तस्कीन तो लेकिन इक लफ़्ज़ भी तस्कीन के क़ाबिल नहीं होता