हुस्न के ग़म्ज़े भी देखे हैं सितम देखे हैं दिल पे जो कुछ भी हुए हैं वो करम देखे हैं अहल-ए-दिल ने जिन्हें आसार-ए-क़यामत समझा हम ने आँखों से वही नक़्श-ए-क़दम देखे हैं अपने ही पूजने वालों को जो देते हैं सज़ा मा'बद-ए-इश्क़ में ऐसे भी सनम देखे हैं तुझ को मालूम नहीं गर्दिश-ए-दौराँ हम ने बाज़-औक़ात क़यामत के क़दम देखे हैं उन की मस्ताना-ख़िरामी के जिलौ में हम ने ऐश देखे हैं कभी और कभी ग़म देखे हैं क्या मोहब्बत के हक़ाएक़ का पता दें तुम को जज़्बा-ए-शौक़ से उभरे तो अलम देखे हैं मर्ज़ी-ए-दोस्त पे 'बासित' जो मिटा दें ख़ुद को ऐसे जाँबाज़ ज़रा हम ने भी कम देखे हैं