ऐ इश्क़ रुख़-ए-लाला-ओ-शबनम की तरी दे ज़ख़्मों को मिरे लुत्फ़-ए-गुदाज़-ए-सहरी दे नाला-कश-ए-हालात हूँ मजबूर-ए-फ़ुग़ाँ हूँ तौफ़ीक़-ए-शकेबाई-ए-कर्ब-ए-जिगरी दे नादीदा-ए-मंज़िल हूँ अँधेरी ही नज़र में जुगनू को मज़ाक़-ए-शग़फ़-ए-हम-सफ़री दे मैं अब भी दिखा सकता हूँ परवाज़ का आलम दुनिया न मुझे ता'ना-ए-बे-बाल-ओ-परी दे तज़लील-ए-क़नाअत तो गवारा नहीं लेकिन वो क्या करे क़ुदरत जिसे दरयूज़ा-गरी दे इन सूखे दरख़्तों पे गुज़ारा करूँ कब तक ऐ मौसम-ए-गुल मुझ को कोई शाख़ हरी दे दिल ले के चला है तरफ़-ए-शहर-ए-निगाराँ अब तो मिरे अल्लाह मुझे ख़ुश-नज़री दे महरूम-ए-बसीरत है फ़न-ए-शेर में 'तुरफ़ा' इस कोर-हुनर को सनद-ए-दीदा-वरी दे