वो हुई चोट मोहब्बत में कि बस मान गया कोई काफ़िर था जो ले कर मिरा ईमान गया थी बहुत वहशत-असर कश्मकश-ए-अक़्ल-ओ-जुनूँ मैं ने दामन को सँभाला तो गरेबान गया इश्क़ में कुछ न रहा दाग़-ए-मोहब्बत के सिवा दिल गया होश गया घर गया सामान गया तौबा तौबा मिरी तौबा अरे तौबा तौबा क्या घड़ी थी कि मैं वाइज़ का कहा मान गया दिल के देने का ये अंजाम अरे वाह रे इश्क़ एक तो जान गई दूसरे एहसान गया रिंद ने सोचा कि दम लेने की फ़ुर्सत दे दो शैख़ जी ख़ैर मनाते हैं कि तूफ़ान गया इश्क़ को 'ख़िज़्र' अभी फ़िक्र से कर के ता'बीर काफ़िरी के लिए का'बे में मुसलमान गया