ऐ मोहब्बत देख तौहीन-ए-शकेबाई न हो मेरा कुछ भी हश्र हो बस उन की रुस्वाई न हो हम से पूछो जल्वा-ए-बे-रंग की रंगीनियाँ ख़ाक देखेंगी वो आँखें जिन में बीनाई न हो किस ने दस्तक दी ये दरवाज़े पे जा कर देखना मुज़्दा-ए-फ़स्ल-ए-बहाराँ सुब्ह-ए-नौ लाई न हो हम-नशीं पर्वर्दा-ए-दर्द-ओ-अलम है मेरी ज़ात कौन सी वो मौज है जो मुझ से टकराई न हो ज़िंदगी जैसा न होगा कोई बेगाना-मिज़ाज एक मुद्दत साथ रह कर भी शनासाई न हो ताज़गी सी है हवाओं में फ़ज़ा में नग़मगी हम-क़फ़स सेहन-ए-गुलिस्ताँ में बहार आई न हो तेरा 'मूसा' एक आसी तू है रहमान-ओ-रहीम या-इलाही हश्र के दिन उस की रुस्वाई न हो