दौर-ए-शबाब ज़ुल्म-ओ-वफ़ा याद आ गया वो जब भी याद आए ख़ुदा याद आ गया वो सामने रहे तो मुझे चुप सी लग गई वो जब गए हर एक गिला याद आ गया जब दो नए दिलों में हुए कुछ मुआहिदे मुझ को भी अपना दौर-ए-वफ़ा याद आ गया मंसूर-ओ-दार का जो सुना मैं ने वाक़िआ' मुझ को तज़ाद-ए-जुर्म-ओ-सज़ा याद आ गया नमनाक हो के रह गई क्यों चश्म-ए-मस्त-ए-नाज़ क्या फिर कोई ख़राब-ए-वफ़ा याद आ गया ख़ुर्शीद को शफ़क़ की फ़ज़ाओं में देख कर दस्त-ए-हसीं पे रंग-ए-हिना याद आ गया गुज़रा नज़र से जब कोई बर्बाद-ए-आरज़ू 'मूसा' को चाहतों का मज़ा याद आ गया