ऐ शौक़ के मतवाले कुछ तुझ को ख़बर भी है इक तू ही नहीं रुस्वा वो रश्क-ए-क़मर भी है दिल आइना-ए-महफ़िल और महफ़िल-ए-आईना देखो मिरी आँखों में आईना-ए-तर भी है ऐ शो'ला-ए-जव्वाला टुक साथ उसे भी ले मुद्दत से तमन्ना में इक ख़ाक-बसर भी है दिल तेरी कशाकश से आए तो मिरे घर वो चेहरे पे मगर उन के कुछ गर्द-ए-सफ़र भी है मैं उन का हूँ शैदाई मुझ से उन्हें नफ़रत है दुनिया-ए-मोहब्बत में जन्नत भी सक़र भी है इस वा'दा-ए-फ़र्दा का क्या ख़ाक यक़ीं आए लब पर तो तिरे हाँ है आँखों में मगर भी है आईना-ए-मा'नी पर की हम ने जिला 'नक़वी' अब भी जो न हो क़ाइल पूछो कि नज़र भी है