ऐसा हुआ है यार मिरे इम्तिहाँ से ख़ुश बुलबुल हो जैसे वस्ल-ए-गुल-ए-बोस्ताँ से ख़ुश गूँगी से क्या है लुत्फ़-ए-मुलाक़ात हज़्ज़-ए-नफ़स वो ख़ुद ही जानवर हैं जो हैं बे-ज़बाँ से ख़ुश उस्ताद भी हैं यार भी हैं बा-मज़ाक़ भी क्यूँकर न दिल हो शैख़ मोहम्मद ज़माँ से ख़ुश ऐ मामा छेद भेद कुछ इस में ज़रूर है बीबी से तू ख़फ़ा है मगर है मियाँ से ख़ुश बे-उज़्र हैं कभी उन्हें इंकार ही नहीं हर बात में वो रखते हैं आशिक़ को हाँ से ख़ुश इस बात का है हम को 'इनायत' बहुत ख़याल ना-ख़ुश वो इक ज़माने से हैं काले ख़ाँ से ख़ुश