ऐसा नहीं कि एक मिरा घर उदास है तेरे बग़ैर जो भी है मंज़र उदास है कोई असर दिखा न सका फ़न का मो'जिज़ा अपने बुतों को देख के आज़र उदास है पहलू-ए-संग में भी है इक दर्द-मंद दिल वहशी के सर को फोड़ के पत्थर उदास है जिस ने किया था क़त्ल किसी बे-गुनाह का अपने किए पे अब वही ख़ंजर उदास है ख़ामोश सत्ह-ए-आब है मग़्मूम है फ़ज़ा कश्ती को ग़र्क़ कर के समुंदर उदास है जिस दिल के आइने में नहीं अक्स-ए-रू-ए-दोस्त उस दिल के आइने का मुक़द्दर उदास है साक़ी की बे-नियाज़ी-ए-पैहम को देख कर 'जौहर' हयात-ए-इश्क़ का साग़र उदास है