बा-वक़ार लहजे में पुर-असर कहा जाए

बा-वक़ार लहजे में पुर-असर कहा जाए
दिल का हाल कुछ भी हो मुख़्तसर कहा जाए

वुसअ'त-ए-तख़य्युल को बाल-ओ-पर कहा जाए
शौक़ की बुलंदी को बाम-ओ-दर कहा जाए

क्यों न हम बदल डालें कोहना इस्तलाहों को
क्यों न आज क़ातिल को चारागर कहा जाए

ज़िंदगी की राहों में कौन साथ देता है
किस को इस मसाफ़त में हम-सफ़र कहा जाए

जिस तरफ़ से वो गुज़रें बस वो रहगुज़र ठहरे
आम रास्ते को क्यों रहगुज़र कहा जाए

चाहे जिस तरह कहिए ख़त्म हो नहीं सकता
इश्क़ वो फ़साना है उम्र भर कहा जाए

वो चमन हो या सहरा दोनों एक जैसे हैं
इक अजीब उलझन है किस को घर कहा जाए

दिल की रौशनी को लोग क्यों सहर नहीं कहते
वक़्त के उजाले को क्यों सहर कहा जाए

गुमरही की मंज़िल में किस को आज ऐ 'जौहर'
राहज़न कहा जाए राहबर कहा जाए


Don't have an account? Sign up

Forgot your password?

Error message here!

Error message here!

Hide Error message here!

Error message here!

OR
OR

Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link to create a new password.

Error message here!

Back to log-in

Close