ऐसा नहीं कि तुझ से शिकायत नहीं मुझे ख़ुद को गँवा के तेरी ज़रूरत नहीं मुझे इस डगमगाती नाव पे साहिल की आरज़ू आई समझ में अब भी सियासत नहीं मुझे पथराव हो रहा है मिरी सम्त इस लिए कहता हूँ सच कि झूट की आदत नहीं मुझे अब मैं जो मुल्तजी हूँ तो वो मुल्तफ़ित नहीं कहते हैं बार बार कि फ़ुर्सत नहीं मुझे कुछ मुझ में बुज़दिली के अनासिर ज़रूर हैं इस से मुराद अपनी शराफ़त नहीं मुझे बहला रहा हूँ ख़ुद को ग़म-ए-रोज़गार से क्या अब जुनून-ए-शौक़-ओ-मोहब्बत नहीं मुझे सब कुछ मफ़ारिक़त की रिआ'यत से कह दिए कहते थे जो कि सब्र-ओ-क़नाअत नहीं मुझे मतलब-परस्त लोगों में गुज़री है एक उम्र बेजा करम पे आप के हैरत नहीं मुझे मक्र-ओ-फ़रेब-ओ-ता'ना-ओ-तोहमत से दूर हूँ मशहूर ये है ख़्वाहिश-ए-जन्नत नहीं मुझे मिलता हूँ इक तवारुद-ए-ख़ातिर को शाना-कश मक़्सूद इस से दिल की हिफ़ाज़त नहीं मुझे शम्अ'-ए-उमीद-ए-वस्ल मुनव्वर है 'सरफ़राज़' तूल-ए-शब-ए-फ़िराक़ से वहशत नहीं मुझे