ऐसा नहीं मिलेगा कहीं बे-क़रार दिल आशुफ़्तगी का मारा हुआ सोगवार दिल बाज़ार भी है दैर-ओ-हरम भी हैं इश्क़ भी झेले तो झेले कितना ग़म-ए-रोज़गार दिल कुछ रोज़ से वो ख़स्ता-तनी है कि क्या कहूँ सीना रफ़ू किया तो हुआ तार-तार दिल था इक ख़याल उस का सो वो भी चला गया किस से निकाले जा के भला अब ग़ुबार-ए-दिल बस एक संग-ए-दर से रहा रिश्ता उम्र-भर ऐसा नहीं मिलेगा इबादत-गुज़ार दिल तेरी ही बे-नियाज़ अदा का असर ये है अब ख़ुद ही ढूँढने लगा राह-ए-फ़रार दिल इस शहर-ए-रंग-ओ-नूर से आगे निकल गया अब जा चुका है इश्क़-ए-मजाज़ी के पार दिल