बहुत क़ीमती हैं ये पैरों के छाले अँधेरों में हैं ये सरापा उजाले चमकने की ख़ातिर है बेताब हर शय कोई रौशनी इन अँधेरों पे डाले तबीअत से क़ातिल हैं पर लग रहे हैं बहुत सीधे-सादे बड़े भोले-भाले जफ़ा करने वाले जफ़ा कर रहे हैं वफ़ा कर रहे हैं वफ़ा करने वाले इन आँखों के दीपक बुझे जा रहे हैं ख़ुदा के लिए रुख़ से पर्दा उठा ले परी-रुख़ हैं हर-सू तिरी अंजुमन में कहाँ तक कोई अपने दिल को सँभाले जिन्हें सुन के गुलशन में है शादमानी ये नग़्मे हैं 'अमृत' के बुलबुल के नाले