ऐसे भी कहाँ मिलेंगे दिल-जू ए'जाज़ ब-रंग-ए-चश्म-ए-आहू इक बार हम इस तरह से रोए उन के भी निकल पड़े थे आँसू फिरता हूँ मैं दर-ब-दर जहाँ में किस की है तलाश आज हर-सू अपनी सी जहाँ में कर गुज़रिए शल होते रहेंगे दस्त-ओ-बाज़ू दीवाना बना रहे हैं हम को दुनिया ये तिरे दराज़ गेसू ईमान है जिन का रंग-ओ-बू पर ठहरे हैं वही तो आज बद-ख़ू टूटा है तिलिस्म-ए-पाक-बाज़ी आँखों में वो भर के आए जादू बदला नहीं रंग गुल्सिताँ का फूलों में कहाँ से आए ख़ुशबू 'अंजुम' ये मरज़ न जाएगा अब अब इस की कोई दवा न दारू