ऐसे नशे तो करने की आदत सी हो गई अब बार बार मरने की आदत सी हो गई रंज-ओ-अलम तो छोड़ीए ख़ुशियों में आज कल आँखों में अश्क भरने की आदत सी हो गई मरहम ही बन गया है मिरे दर्द का सबब ज़ख़्मों को'' यूँ उभरने की आदत सी हो गई हर चोट से मैं और निखरता चला गया मुश्किल में भी सँवरने की आदत सी हो गई क्या कोई आस-पास है या है गुमाँ मुझे यूँ बे-वजह ठहरने की आदत सी हो गई जिस राह से गुज़रना कभी नागवार था उस राह से गुज़रने की आदत सी हो गई बे-ख़ौफ़ चल पड़े थे मोहब्बत की राह में अब हर क़दम पे डरने की आदत सी हो गई कैसे छुड़ाएँ रंग-ए-मोहब्बत पत्ता नहीं हर दिल से तो उतरने की आदत सी हो गई अब कौन मेरे दिल में बनाएगा आशियाँ इस शह्र को उजड़ने की आदत सी हो गई