ऐसे ज़ालिम से शनासाई हुई उम्र भर की क़ैद-ए-तन्हाई हुई सिल गए लब और ज़बाँ जब कट गई तब तिरी महफ़िल में शुनवाई हुई ख़्वाब हसरत रौशनी ख़ुशबू नशा सब तिरी शक्लें हैं मन भाई हुई देख कर तुझ को शराबी हो गया तोड़ दी मैं ने क़सम खाई हुई हम तिरी महफ़िल से प्यासे उठ गए इस में तेरी भी तो रुस्वाई हुई