दर-ब-दर कूचा-ब-कूचा देर तक भटकेगी रात फिर थकन से चूर हो कर मेरे घर ठहरेगी रात पहले पी कर ख़ूब हंगामे करेगी बज़्म में दिल की तन्हाई से आख़िर दोस्ती कर लेगी रात उजड़ी आँखों में बसा कर झूटे ख़्वाबों की ख़लिश झुकती पलकों को मिरी फिर प्यार से चूमेगी रात बेवफ़ा महबूब की मानिंद रुख़्सत दिन हुआ एक इक पल का हिसाब अब देखना मांगेगी रात कैसे तय होंगे भला ये रोज़-ओ-शब के फ़ासले हम तो सो जाएँगे थक कर जाग कर सोचेगी रात आईये अब लौट चलिए घर की जानिब ऐ 'हसन' आप को घर में न पा कर रात भर जागेगी रात