बर्बादी-ए-सरमाया-ए-जाँ देख रहा हूँ उल्फ़त की नवाज़िश का समाँ देख रहा हूँ किस शोख़ के शानों पे हैं बिखरे हुए गेसू बरहम जो निज़ाम-ए-दो-जहाँ देख रहा हूँ देखा न जिसे हज़रत-ए-मूसा ने सर-ए-तूर मैं उस को क़रीब-ए-रग-ए-जाँ देख रहा हूँ बेताब जो है अपनी जबीं सज्दों की ख़ातिर झुक कर तिरे क़दमों के निशाँ देख रहा हूँ अल्लाह रे जज़्ब-ओ-कशिश-ए-इशरत-ए-हस्ती हसरत से सू-ए-उम्र-ए-रवाँ देख रहा हूँ