दर्द निस्बतन कम है आज दिल के छालों में फिर भटक न जाऊँ मैं सुब्ह के उजालों में ज़िंदगी की राहों में यूँ न छोड़िए तन्हा हम भी हैं ज़माने से साथ चलने वालों में मुस्तक़िल ख़मोशी का कुछ तो हल निकल आता हम अगर न खो जाते वक़्त के सवालों में आज उन की ज़ुल्फ़ों की और बढ़ गई क़ीमत रात भी मुक़य्यद है उलझे उलझे बालों में मौत और मुश्किल हो ज़िंदगी के मारों की ख़ून-ए-दिल मिला दीजे ज़हर के पियालों में मैं तो कुछ नहीं कहता ख़ुद मुलाहिज़ा कीजे किस का नाम चलता है आज ख़ुश-जमालों में नर्म नर्म लब हैं या पंखुड़ी कँवल की है बंद है शफ़क़ उन के फूल जैसे गालों में वो चराग़ कल शब को बुझ गया सर-ए-महफ़िल जिस को ढूँडते हो तुम आज के उजालों में लाख मुझ को वो भूलें फिर भी है यक़ीं 'नय्यर' मुनफ़रिद रहूँगा मैं याद करने वालों में