ऐसी वफ़ा करो के वफ़ा बोलने लगे मुट्ठी की कंकरी भी ख़ुदा बोलने लगे हिम्मत के वो चराग़ जलाओ हयात में नज़रें झुका के जिन से हवा बोलने लगे शर्मिंदगी के अश्क बहाओ कुछ इस तरह मा'बूद के करम की अता बोलने लगे मैं बोलती नहीं हूँ तो अल्लाह से डरो ऐसा न हो तुम्हारी जफ़ा बोलने लगे जब सामने आए तो वो शिकवा न कर सके क्या बोलने को आए थे क्या बोलने लगे