अजब क्या हौसले ऐ दिल हमारे टूट जाते हैं इताब-ए-गर्दिश-ए-दौराँ से तारे टूट जाते हैं हुई हैं रेज़ा रेज़ा ख़ुद चट्टानें हम से टकरा के मगर हम देख कर आँसू तुम्हारे टूट जाते हैं मैं चाहूँ मुस्कुराना तो छलक जाते हैं अब आँसू कि अक्सर सैल-ए-दरिया से किनारे टूट जाते हैं नसीहत ऐ मिरी बेटी हमेशा ध्यान में रखना सहारों पर न तकिया हो सहारे टूट जाते हैं 'क़मर' इस बज़्म-ए-दुनिया से निभाएँ अपना रिश्ता क्या जो टूटी साँस तो रिश्ते ही सारे टूट जाते हैं