रूप बदलेगा फिर उस का छल और भी देख ऐ दिल सँभल तू सँभल और भी दाग़ आए नज़र उन के दामन पे क्या वो तो लाए हैं गंगा से जल और भी ख़ाक होना ही आशिक़ की मेराज है मिस्ल-ए-परवाना पहले तू जल और भी उन का बचना समझ ले तिरी मौत है हैं सँपोलों के फन और कुचल और भी सिर्फ़ सहरा नहीं सब्ज़ा-ए-गुल भी हैं आरज़ूएँ जवाँ है तो चल और भी शौक़-ए-दीदार बढ़ता ही जाए 'क़मर' लन-तरानी तू सुन कर मचल और भी