थोड़ा सा और मुझ को तू अपने क़रीब कर नेकी इसी का नाम है मेरे हबीब कर क्या क्या नहीं सुना तिरे बारे में आज-कल उठ कर दिखा धमाल या कुछ तो अजीब कर पहले भी मुफ़्लिसी की हूँ सिदरा पे यार मैं दामन छुड़ा के और न मुझ को ग़रीब कर मानूस हो चुका हूँ मैं इस आरिज़े से अब अपना तुझे जो काम है जा के तबीब कर देता हूँ वास्ता मैं तुझे पंजतन का आज ऐ ज़ात-ए-लम-यज़ल मेरे अच्छे नसीब कर हिजरत के इस अज़ाब से ख़ाइफ़ नहीं 'सहर' लेकिन नज़र से दूर ये मेरा रक़ीब कर