अजल के साथ चले हैं यूँ इंतिज़ार के बाद वफ़ा के क़हत पड़ेंगे वफ़ा-शिआ'र के बाद मिलें कहाँ से वो हम से सनम-परस्त कि याँ जो बंदगी करें तेरी गुनाहगार के बाद निगाह-ए-नाज़ के तीरों की दिल में लुत्फ़-ओ-ख़लिश नहीं कहीं पे वो मेरे सितम-शिआ'र के बाद किया जो क़त्ल उन्हों ने तो पूछो उन से कोई क़रार में नहीं हैं क्यों वो बे-क़रार के बाद ख़रीद कर ग़म-ए-जाँ तुझ से मेरे शोख़-ओ-हसीं मलाल कोई करेगा न दिल-फ़िगार के बाद ख़ुदा भी महव-ए-कशाकश है ख़ुल्द के लिए हूर बनाए कैसी हसीं तुझ से शाहकार के बाद करें जो इश्क़ तो रहती कहाँ ये रंग-ओ-रविश मिलेंगे तुझ से कभी हम जफ़ा-ए-यार के बाद ये दिल-लगी तो करे हैं वफ़ा-शिआ'र हों तब तुम्हारी ज़ुल्फ़ सँवारें अगर ख़ुमार के बाद ये इश्क़ ज़र से है ताकि ये खस्ता-हालों से हमारा दा'वा करेंगे वो रोज़गार के बाद बदन के टुकड़े खिलाए तमाम उम्र उसे ग़रीबी भूक से मर जाएगी 'वक़ार' के बाद