अपना जहाँ में रहना है यादगार रहना मुश्किल था अपने घर में बेगाना-वार रहना ऐ मौत रहम कर अब ये कोई ज़िंदगी है नज़रों से अपनी गिर कर दुनिया पे बार रहना हाथों पे सर को रक्खे हर रिंद कह रहा है बे-कैफ़ रहने ही तक था बे-ख़ुमार रहना किस तरह मैं ने माना ऐ इख़्तियार वाले मय्यत के मिस्ल अपना बे-इख़्तियार रहना रंगीनियों ने किस की सिखला दिया है गुल को जब तक चमन में रहना बन कर बहार रहना हस्ती के क़ाफ़िले को उस राहज़न ने लूटा कहता था राह भर जो हाँ होशियार रहना 'बेख़ुद' की ज़िंदगी की ये भी कोई तरह थी बे-इख़्तियार आना बे-इख़्तियार रहना