अज़्मत-ए-फ़न के परस्तार हैं हम ये ख़ता है तो ख़ता-वार हैं हम जोहद की धूप है ईमान अपना मुंकिर-ए-साया-ए-दीवार हैं हम जानते हैं तिरे ग़म की क़ीमत मानते हैं कि गुनहगार हैं हम उस को चाहा था कभी ख़ुद की तरह आज ख़ुद अपने तलबगार हैं हम अहल-ए-दुनिया से शिकायत न रही वो भी कहते हैं ज़ियाँ-कार हैं हम कोई मंज़िल है न जादा 'मोहसिन' सूरत-ए-गर्दिश-ए-परकार हैं हम