रक़्स करते हुए मैं तुझ को मनाया करती धूल होती तो कभी धूल उड़ाया करती किसी धागे से बँधा आता अगर तू मिरे पास मिन्नतों वाले दिए रोज़ जलाया करती मैं शजर-कारी के मौसम में उगाती कोई पेड़ और मोहब्बत से परिंदों को बुलाया करती पूछता मुझ से अगर कोई मुरादें सारी मैं तिरा चेहरा तिरा नाम बताया करती झील के सूखते पानी को दिलासे देती और बारिश के लिए अश्क बहाया करती